Friday, 31 January 2014

चार्वाक

चार्वाक एक भौतिकवादी दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है ।

चार्वाक का मतलब नास्तिक से लिया जाता है, वेदबाह्य भी कहा जाता है, दर्शन छ: प्रकार के है, चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत. इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, इनमे से चार्वाक अवैदिक और लोकायत (भौतिकतावादी) दोनो ही है.

चार्वाक केवल प्रत्यक्षवादिता का समर्थन करता है, वह अनुमान आदि प्रमाणों को नही मानता है। उसके मत से पृथ्वी जल तेज और वायु ह्यह चार ही तत्व है, जिनसे सब कुछ बना है, उसके मत में आकाश तत्व की स्थिति नही है,इन्ही चारों तत्वों के मेल से यह देह बनी है,इनके विशेष प्रकार के संयोजन मात्र से देह में चैतन्य उत्पन्न हो जाता है,जिसको लोग आत्मा कहते है,शरीर जब विनष्ट हो जाता है,तो चैतन्य भी खत्म हो जाता है,इस प्रकार से जीव इन भूतो से उत्पन्न होकर इन्ही भूतो के के नष्ट होते ही समाप्त हो जाता है,आगे पीछे इसका कोई महत्व नही है,इसलिये जो चेतन में देह दिखाई देती है वही आत्मा का रूप है,देह से अतिरिक्त आत्मा होने का कोई प्रमाण ही नही मिलता है,चार्वाक के मत से स्त्री पुत्र और अपने कुटुम्बियों से मिलने और उनके द्वारा दिये जाने वाले सुख ही सुख कहलाते है,उनका आलिन्गन करना ही पुरुषार्थ है,संसार में खाना पीना और सुख से रहना चाहिये.इस दर्शन शास्त्र में कहा गया है,कि:-

यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत,भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:॥

अर्थ है कि जब तक जीना चाहिये सुख से जीना चाहिये,अगर अपने पास साधन नही है,तो दूसरे से उधार लेकर मौज करना चाहिये,शमशान में शरीर के जलने के बाद शरीर को किसने वापस आते देखा है. परलोक और स्वर्ग आदि का सुख पुरुषार्थ नही है,क्योंकि वे प्रत्यक्ष नही दिखाई देते,इस दर्शन के अनुसार जो लोग परलोक के स्वर्ग सुख को अमिश्र शुद्ध सुख मानते है,वे आकाश में किले बनाते है,क्योंकि परलोक तो है ही नही,फ़िर उसका सुख कैसा? उसे प्राप्त करने के यज्ञ आदि उपाय करना व्यर्थ है,वेदादि धूर्तों और स्वार्थियों की रचनायें है,"त्रयो वेदस्य कर्तार: धूर्त: भाण्डनिशाचरा:",जिन्होने लोगो से धन प्राप्त करने के लिये सब्ज बाग दिखाये है,यज्ञ में मरा हुआ पशु यदि स्वर्ग को जायेगा,तो यजमान अपने पिता को ही क्यों नही यज्ञ में मारता है,मरे हुए प्राणी की तृप्ति का साधन यदि श्राद्ध होता है,तो विदेश जाने वाले लोग श्राद्ध करने के बाद ही जाया करें,जो उनको रास्ते में मिल जायेगा,जो सामान या पैसा वह राह खर्च के लिये ले जा रहा है,तो उसे न देकर यहीं पर एक ब्राह्मण को नित्य बढिया खिला देना चाहिये,जाने वाले को सब कुछ मिल जायेगा. जगत में मनुष्य प्रायं दिखाई देने वाले फ़ल के अनुरागी होते है,(नीति-शास्त्र) और (काम-शास्त्र) के अनुसार अर्थ और काम को ही पुरुषार्थ माना जाता है,परर्लौकिक सुख को प्राय: नही मानते है,कहते है कि किसी ने अगर परलोक का सुख देखा है,तो बताता क्यों नही,जो कहते है वह सब मनगढन्त बाते है,वह कुछ भी सत्य नही है,जो प्रत्यक्ष है,वही सत्य है.इस मत का एक दूसरा नाम भी जिसे (लोकायत) के नाम से जाना जाता है,लोगों के अन्दर फ़ैला हुआ मत ही लोकायत कहलाता है,चार्वाक को दर्शन शास्त्रियों ने समाज से दूर ही रखा है,लेकिन इसके तर्क को पधने के बाद साधारण व्यक्ति बहुत ही शीघ्र इसकी मीमांसाओं में अपने को फ़ंसा लेता है,इस तर्क को मानने वाले बहुत ही लोग पैदा हो गये है,जिनका काम मात्र खाना पीना और ऐश करना ही माना जाता है.यद्यपि यह आज के भौतिकता वादी युग के अनुसार मिलता है,जो कि केवल तर्क और युक्ति पर ही आधारित है,परवर्ती दार्शनिक सम्प्रदायों के ऊपर इसके आघात का यह प्रभाव हुआ कि इन सम्प्रदायों के तर्कों की मात्रा बहुत अधिक बढ गयी,जिससे यह किसी भी आक्षेप विक्षेप का उत्तर दे सकें,चार्वाक दर्शन का फ़ैलाव भारत के पश्चिमी देशों में बहुत अधिक फ़ैला है।



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